😭लाशें सवाल नहीं करतीं😭:
(दिल्ली भगदड़ हादसा)
लाशों को धूप न सताती है,
न ही होती कोई परेशानी।
न उनका मन विचलित होता,
न रखती वे कोई कहानी।
न बोलें, न प्रश्न उठाएँ,
न माँगे अपना अधिकार,
हत्यारों की जय जयकार करे,
या सहें अपमान अपार।
वे बस पड़ी रहती हैं, चुपचाप,
तुम स्वीकारो या ठुकराओ।
घुसपैठी कहो या परदेसी,
वे कभी न विरोध जताओ।
तुम जलाओ, रौंदो, कुचलो,
या छिपा दो अंधेरी रातों में,
न हाथ पकड़ेंगी तुम्हारा,
चाहे भुला दो अपनी बातों में।
लाशें नहीं सुनती खबरें,
न्यूजरूम भी अब श्मशान हुआ।
जहाँ सच बिकता चंद सिक्कों में,
पत्रकारिता अब बेईमान हुआ।
संवेदना अब तस्वीरों में सिमटी,
तुम्हारी आँखें दिखावा हैं।
यह शोक नहीं, एक तमाशा है,
जहाँ श्रद्धांजलि भी छलावा है।
लाशें कभी न चीखेंगी,
न गिड़गिड़ा कहेंगी कुछ।
पर एक दिन वे जिंदा होकर,
तुम्हारे मन में एक दिन गूंजेगी
बच्चा धकेले स्ट्रेचर पर माँ को,
कोई छोटा भाई गोद में मर जाए।
तब समझोगे इस तंत्र का सच,
जब इंसानियत ही मर जाए।
लाशें नहीं कोसतीं,
वे बस चुपचाप देखती रहती हैं।
कैसे इंसान बनते लाशें,
कैसे आत्माएँ सड़ती रहती हैं।
जब तक हत्यारे खुद को रक्षक कहेंगे,
जब तक जनता आँख मूँद सोएगी।
तब तक ये लाशें बनती रहेंगी,
और दुनिया सिसकियों में खोएगी।
सवालें बहुत है मेरे मन में लेकिन मिलता कोई जवाब नहीं।
क्या वह जिम्मेदार नहीं जो पूछता है सवाल नहीं।।
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लेखक की निजी विचारधाराओं पर आधारित